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अश्रु बनता जा रहा पानी

मिटते जा रहे क्यूँ अहसास दिलों से
रिश्ते बनते जा रहे  फ़िल्मी कहानी
भावनाओं का हर पल उठे जनाज़ा
अश्रु बनता जा रहा आँख का पानी।

स्वार्थ में ऐसे लिप्त दिखता समाज
धन के लोभ में निरंतर जकड़ा आज
ठोकर लगते ही देता माँ को आवाज़
दर्द में ही क्यूँ रिश्तों का होता आगाज।

व्यस्तता भरे जीवन में टूटे दिल के तार
धन लोभी चाहे सदा नौकर,बंगला कार
गरीब लगें उन्हें दुनिया में सबसे बेकार
वृद्ध माता-पिता प्रतीत होने लगते भार।

कंप्यूटर, मोबाइल ने रच दी नयी  कहानी
मशीनी युग ने बदली बच्चों की ज़िन्दगानी
रिश्तों की कीमत आज युवाओं ने न जानी
ना जाने अश्रु क्यूँ बनता जा रहा है पानी।

डॉ. अर्पिता अग्रवाल
नोएडा, उत्तरप्रदेश

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8 Comments

Nand Gopal Goyal

07-Feb-2022 03:33 PM

Very nice

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Ayaansh Goyal

07-Feb-2022 03:32 PM

मनमोहक कविता

Reply

N.ksahu0007@writer

07-Feb-2022 02:16 AM

बहुत अच्छा लिखा आपने

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